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संस्कृति का उत्थान या पतन..!! : हीराराम गेहलोत
Posted By : Posted By गोविन्द सिंह पंवार on 29 Dec 2021, 03:57:43

।।संस्कृति का उत्थान या पतन..!!।।
भारत के महान शायर कवि मुहम्मद इकबाल ने लिखा है कि,
” यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।”
यह भाव हमारी महान सांस्कृतिक विरासत के मूल्यों को अक्षुण्ण रखने में हमारे पुरखो के योगदान की गाथा का सही बखान है जिन्होंने अपनी संस्कृति को मिटने नही दिया। समय के साथ विश्व की प्राचीन सांस्कृतिक विरासतें-यूनान,मिश्र व रोम की संस्कृति मिट गई लेकिन भारतीय संस्कृति को आंच नही आई।जबकि हमारी सांस्कृतिक विरासत को मिट्टी में मिलाने के लिए क्रूर आक्रांताओं और दुश्मनों ने बहुत कोशिश की। विदेशी विधर्मी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति के महान धरोहरों को नष्ट-विनष्ट करने में कोई कसर नही छोड़ी और हमारी महान परम्पराओ पर भी जबर्दस्त चोट की। क्रूर आक्रांताओं ने हमारे पुरखो पर अत्याचार-अनाचार किए,हमारी नारियों पर जघन्य दुष्कृत्य किए और धर्म परिवर्तन का दबाव डाला लेकिन उन्होंने अपनी वीरता और बुद्धिमता से संस्कृति को नष्ट-विनष्ट होने से बचा लिया। दिल की सच्चाई से कहते है कि धन्य है हमारे पुरखे जिन्होंने ऐसे विकट व विषम परिस्थितियों के दौर से संस्कृति को बचा लिया।
कल्पना करो यदि आज वह दौर होता तो हम अपनी संस्कृति को बचाने के लिए क्या अपने महान पुरखो जितना त्याग और अर्पण कर पाते?आज हमे ऐसी स्थिति-परिस्थियों से गुजरना नही पड़ रहा है फिर भी हम अपनी आँखों के सामने संस्कृति का पतन देख रहे हैं। आज हमारा शैक्षिक स्तर भी उन्नत है लेकिन हम सांस्कृतिक विरासत के आदर्श प्रतिमानों और मूल्यों पर गंम्भीर चोट होते मूकदर्शक देख रहे हैं। आधुनिकता के नाम पर जो बदलाव हम अंगीकार कर रहे हैं कही वह हमारे लिए ही दुखदायी व पीड़ादायक न बन जाय। ऐसी सोच से मन-मस्तिष्क में ज्वार उठता है।युवाओ में अपनी सभ्यता, संस्कृति और मान्यताओं के प्रति लगाव कम होता जा रहा है। हमारा युवा वर्ग आधुनकिता के नाम पर नव परम्परा को अंगीकार कर आगे बढ़ने की चाह रख रहा है और हम लोग भी बिना सोच-समझ के व बच्चों की खुशी के लिए उस प्रवाह में बहते चले जा रहे हैं लेकिन हम इसके भावी दुष्परिणामो से अनभिज्ञ ही है। मैं आप सभी को दो ऐसे बदलावों बारे में बात कर रहा हूँ जिसको हमने जल्दबाजी व बिना आत्मचिंतन से आत्मसात कर लिया है।
वैवाहिक परम्परा में बदलाव;- आज हमने अपनी संस्कृति के विवाह परम्परा में आमूलचल परिवर्तन किया है-नाचगान में डीजे,बैंड बाजे,फिल्मी फूहड़ गानों पर डांस,स्टेज कार्यक्रम एवं प्री-वेडिंग। आज सगाई की रस्म से लेकर विवाह तक सभी परम्पराए बदल गयी। आज सगाई संबंध में मात-पिता की भूमिका गौण हो गयी। युवा पीढ़ी को तरजीह दी जाने लगी,उनका निर्णय ही अंतिम होता है जबकि उनकी विवेक क्षमता व अनुभव भले ही शून्य हो।यही कारण है कि सगाई संबंध काफी टूटते जा रहे हैं।यह सब आज की युवा पीढ़ी के मोबाइल के दुरुपयोग के कारण हो रहा है। विवाह जैसे पवित्र बंधन को आज की युवा पीढ़ी समझ नही पा रही है। प्री-वेडिंग की नई परम्परा ने विवाह जैसे पवित्र बंधन को चोट पहुँचाई है। आज प्री-वेडिंग व फोटो शूटिंग के दौरान ही लड़के व लड़की में अनबन होने से संबंध विच्छेद हो रहे हैं।प्री-वेडिंग के नाम से युवा पीढ़ी को छूट देना क्या उचित है? हम विवाह जैसे पवित्र संस्कार और परम्परा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। प्री-वेडिंग व फोटो शूटिंग के बाद किन्ही कारणवश जब संबंध बिखर जाते है तो लड़के या लड़की को मानसिक अवसाद दे जाते है ,जो जिंदगानी के लिए नासूर बन जाता है।आज हम अपनी युवा पीढ़ी को अवसादग्रस्त देख रहे हैं उसकी वजह संस्कृति से परे मूल्यों को अपनाने की है। आज कई जोड़े या युवक-युवती अवसादग्रस्त की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं। अब प्रश्न उठता है कि – हम जो आधुनिकता के नाम पर जो बदलाव कर रहे है वह बदलाव हमारे व युवा पीढ़ी के स्वर्णिम भविष्य के लिए सुखदायी है या दुखदायी ? हमे इस पर सामूहिक आत्मचिंतन करना होगा। हमने सामाजिक स्तर पर आत्मचिंतन कर रोक नही लगाएंगे तो यह नव परम्परा युवा पीढ़ी के साथ मात-पिता के बुढ़ापे को बिगाड़ देगी।
नव उत्सव का शुभारम्भ :- आज हम जीवन में नव उत्सवों का शुभारंभ देख रहे हैं-एक जन्मोत्सव(HAPPY BIRTHDAY) और दूसरा वैवाहिक वार्षिकोत्सव( MARRIAGE ANNIVERSARY)। ऐसे नव उत्सवों के प्रारम्भ से समाज को नुकसान ही हो रहा है।ऐसे उत्सवों के नाम पर व्यर्थ का आर्थिक बोझ बढ़ रहा है और जन्मोत्सव या वैवाहिक वर्षगाँठ के प्रारम्भ से पाश्चात्य होटल संस्कृति पनप रही है और प्रगाढ़ संबंधों को ग्रहण लग रहा है। जन्मोत्सव के नाम पर युवा अपने मात-पिता से बैर रखने लग गए।कई मात-पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नही होती है और उनके बच्चे जन्मोत्सव मनाने की जिद्द करते है या अपने मित्र के जन्मोत्सव में जाने की जिद्द करते है,इससे पारिवारिक सौहार्द्ध बिगड़ रहा है।जन्मोत्सव जैसे उत्सवों ने ही हमारे भारतीय समाज में BF(बॉय फ्रेंड) व GF(गर्ल फ्रेंड) जैसे विकृत रिश्ते को जन्म दिया है और यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी मात-पिता की आज्ञाकारी नही रही है और अपने कुंठित भावनाओ को पुष्पित-पल्वित करने के लिए घर-परिवार से भाग कर शादी कर रहे हैं ।मात-पिता को घुट-घुटकर जीवन जीने को मजबूर कर रहे हैं। ऐसा ही हाल वैवाहिक वर्षगाँठ मनाने में हो रहा है।पूरे वर्ष भर पति-पत्नि आपस में झगड़ते रहते है लेकिन वैवाहिक वर्षगाँठ के दिन व्यर्थ का ख़र्च करते है। युवा दम्पत्ति अपने मात-पिता की कद्र नही करते है,उनका जीवन कष्टमय है लेकिन ऐसे अनावश्यक उत्सव के नाम पर व्यर्थ ही खर्च कर जाते है जिसे जायज नही ठहराया जा सकता है। आज समाज में पतिव्रता व पत्निव्रता के मानक सामाजिक प्रतिमान स्वयं शर्मिंदा हो रहे हैं। महानगरों में ऐसे उत्सवों के प्रारम्भ ने हमारी ग्रामीण संस्कृति को भी प्रभावित हो गयी है। आज यह आम बात होती जा रही है। हम ऐसी नव परम्पराओ का बिना सोचे-समझे प्रारम्भ कर रहे हैं उससे हमारी सांस्कृतिक विरासत के मूल्य नदारद होते जा रहे हैं। यह सभ्य समाज के लिए उचित नही है।
भारतीय समाज और युवा वर्ग पर यदि पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव इसी तरह बढ़ता रहा, तो भारतीय संस्कृति खतरे में पड़ सकती है। यदि सांस्कृतिक विरासत के मूल्य अक्षुण्ण नही रह पायेंगे तो हम अपनी पीढ़ी के जीवन को सुखदायी नही बना पायेंगे।
अतः हम सब ऐसी नव परम्पराओ के शुभारम्भ पर आत्मचिंतन व आत्ममंथन करे और युवा पीढ़ी के सुकूनदायी जीवन के लिए ऐसी परम्पराओ पर रोक लगाए।ऐसा हम समाज स्तर पर व्यापक सामाजिक नियमावली बनाकर कर सकते है। ऐसा करके ही हम अपनी महान संस्कृति के मानक मूल्यों ,आदर्श प्रतिमानों और परम्पराओ को अक्षुण्ण रखने में सफल होंगे।
हमारी संस्कृति विश्व संस्कृतियों की जननी है,जिसके आदर्श मूल्यों व प्रतिमानों की महत्ता कदापि कम नही होगी। ऐसे मूल्यों के अनुरूप जीवन जीने वाले सदा सुखी रहेंगे।
हम तो दिल से कहते है कि:-
” हमारी सनातन संस्कृति जीवन की अनमोल विधि है,
आदर्श प्रतिमानों व संस्कारो से पोषित बहुमूल्य निधि है।”
आइये,आप और हम सब अपनी महान सनातन सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए पूर्ण ईमानदारी से संस्कृति के मानक मूल्यों व परम्पराओ के अनुरूप जीवन जिए और धर्म व संस्कृति रक्षार्थ पूरी जिम्मेदारी से अपना कर्तव्यकर्म करे।
जय सनातन संस्कृति।
आपका अपना
हीराराम गेहलोत
संपादक
श्री आई ज्योति पत्रिका।