सीरवी समाज - मुख्य समाचार

स्व: परिर्वतन से विश्व परिवर्तन-गणमान्य महानुभावों से विनमु अपील-- गोपाराम पंवार समन्वयक नशामुक्त समाज
Posted By : Posted By कानाराम परिहार कालापीपल on 12 Mar 2013, 22:18:43
परिवर्तन, सनातन सत्य एवं प्रगति का नियम भी है, सम्पूर्ण जगत में हरपल ही कहीं कुछ न कुछ परिवर्तन नयापन होते ही रहते हैं। अच्छे परिवर्तन जो देशहित, जनहित व समाज के साथ परिवार के हित में हो उसको तुरन्त ग्रहण कर लेना चाहिए। जो ऐसा नहीं कर पाते है वे विकास की दौड़ में पीछे रह जाते हैं और पिछड़े कहलाने के साथ-साथ उन्नति में बाधक बन जाते हैं। मृत्युभोज-गंगाप्रसादी जो की एक सामाजिक बुरार्इ एवं कुरीती है तथा कानूनी दृषिट से भी यह एक अपराध है सरकार द्वारा 100 व्यकितयों से अधिक के भोज को वृर्जित किया हुआ है। मृत्यु भी सनातन सत्य है, मृत्यु उपरान्त आयोजित होने वाले विभन्न प्रकार की रीति-रिवाजों, कुरीतियाँ को निभाने पर होने वाली खर्चें को बंद करके यही राशी समाज व परिवार के विकास व शिक्षा पर लगानी चाहिए। मृत्यु उपरान्त रोते-बिलखते बच्चे व औरतों सहित परिवार के सदस्यों को आयोजित शोकसभा (कौण) व श्रद्धाजली कार्यक्रम में हम शोक संतप्त परिवार को दिलासा दिलाने, ढाढस बंधवाने व सहयोग करने के लिए जाते है। वहाँ पर जाने के बाद ऐसी शोकमय माहौल में भोजन का निवाला कैसे हलक के नीचे उतार देते है। यह समझ के परे की बात है। परिवर्तन इन्दौर सीरवी (क्षत्रिय) समाज विषेषांक अंक द्वितीय सितम्बर, 2008 में प्रकाषित लेख वक्त की पुकार में समय की माँग के अनुरूप मृत्युभोज में परिवर्तन नहीं होने पर एक प्रेरक प्रसंग लघुकथा- भोज लिखा है। जिसको पढ़ने के बाद आप मृत्यु के उपरान्त समस्त कार्यक्रम में भोजन ग्रहण नहीं करके उपवास करना पसंद करेंगे। अगर ऐसा हो जाता है तो आज के युग की यह सबसे बड़ी मिसाल उपलब्धी होंगी। साधु संत के अनुसार- अपने घर से एकाध किलोमीटर दूर चला होऊँगा कि एक अजीब-सी गंध का झोका आया। शायद कोर्इ जानवर मर गया होगा। थोड़ा और आगे चला तो देखा कि कौवों, कुत्तों और बेषुमार गिद्धों की भीड़ लगी हुर्इ है। सबके सब उस मरे हुए जानवर पर टूट पड़ रहे थे। मैं जैसे-तैसे नाक पर रूमाल रखकर निकल भागा तो मेरे थोड़ा आगे ही खुले प्रांगण में मनुष्यों की शादी जैसे माहौल की सी बहुत बड़ी भीड़ थी। जीमने-जीमाने की चिल्ल-पों मची थी। पता लगा कि आज किसी प्रतिषिठत व्यकित का मृत्यु भोज-गंगाप्रसादी है। इस भोज-दृष्य को देखकर कुछ समय पूर्व देखा गया दृष्य आँखों के सामने घूम गया। सहसा यह विचार मसितष्क में कौंध गया कि इस भोज और उस भोज में अंतर ही क्या है? एक मरे हुए को खा रहे हैं तो दूसरे मरे हुए के नाम पर दावत उड़ा रहे हैं। दोनों हैं, तो............................ भोज ही ! अपील - गणमान्य महानुभावों से विनमु अपील शास्त्रों के अनुसार मृत्यु उपरान्त- आयोजित होने वाले कार्यक्रमों जैसे कोणंमुकाण की बैठकों, श्रद्धाजंली कार्यक्रमों व बारहवा की रस्म सहित शौक प्रथा व प्रथम त्यौंहार रस्म में बाहर से आने लोगों हेतु भोजन वर्जित है। मास भक्षण के समान कहा गया शास्त्रों में भी मृत्यु पश्चात भोज का अन्न । कृपया अपने स्व:विवेक अनुसार समाज सुधार हित में उचित सहयोग की सभी से विन्रम अपील की जाती है। स्व: परिर्वतन से विश्व परिवर्तन संकल्प पत्र मैं ..............................................................पुत्र श्री .................................................. जाति.................. गोत्र.......................... निवासी ..................................... श्री आर्इ माता जी को साक्षी रखकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि - 1. मैं अपने जीवन से अफीम, तिजारा व शराब सहित अन्य नशीली चीजों का सेवन नहीं करूगां। परिवार में इन चीजों को रोकने का पूरा प्रयास करूंगा। तथा ऐसी नशीली चीजों वाले कार्यक्रम में भोज का बहिष्कार करूंगा। 2. मृत्युभोज-गंगाप्रसादी एक सामाजिक बुरार्इ एवं कुरीति सहित अपराध भी है मैं मृत्यु से सम्बनिधत कोणमुकाण की बैठक, बारहवा की रस्स सहित प्रथम त्यौंहार के कार्यक्रम भोज ग्रहण नहीं करूंगा। श्री आर्इ माता जी इस पुनित अभियान में आगे बढने की शकित दे। हस्ताक्षर दिनांक ........................ नाम ............................... गवाह ......................... पूरा पता ................................... मो.नं. ....................................... मो.नं. ............................... परिवर्तन संसार का नियम है पहले स्वयं सुधरे फिर औरों को सुधारे।