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क्या केवल रोने रूलाने से ही संवेदना प्रकट होती है ? -गोपारामजी पंवार
Posted By : Posted By कानाराम परिहार कालापीपल on 12 Mar 2013, 22:16:40
क्या केवल रोने रूलाने से ही संवेदना प्रकट होती है ? जीवन के साथ जिस तरह से मृत्यु जुडी है उसी प्रकार मृत व्यकित के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करना भी जुडा है। दुर्घटना या और कारण से जब किसी की मृत्यु होती है तो उस परिवार के प्रति हम सभी संवेदना प्रकट करने जाते है, ऐसे ही एक परिवार में, मैं भी गया, वहा जो देखा, अच्छा नही लगा। उस परिवार के इकलौते बेटे की एक हादसे में मृत्यु हो गर्इ थी । माता-पिता पर तो दु:खों का पहाड ही टूट पडा। पूरा परिवार उस शव के पास बैठा रोता- बिलखता रहा एवं अंतिम संस्कार पश्चात संवेदना व्यक्त करने वालों का ताता लगा और महिलाओं-पुरूषों का जोर-जोर से रोने का दौर शुरू हुआ। बार-बार रो-रोकर मृतक की मां की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। जब मैने उसे रोने से मना किया और समझाया तो उसकी एक रिश्तेदार बोली ऐसा करना ही पडता है नही तो लोग क्या कहेगे कि, इन्हें जवान बेटे के मरने का कोर्इ दु:ख ही नहीं है। क्या जोर-जोर से रोने-चीखने से ही पता चलता है कि दु:ख है या नहीं ? एक मा को उसके इकलौते जवान बेटे के मरने पर चीख-चीख कर रोकर अपने दु:खी होने का सबूत देना जरूरी है क्या ? जबकि हम सभी जानते है कि एक मां के लिए इससे बडा दु:ख और क्या हो सकता है। थोडी देर में एक परिचित महिला संवेदना प्रकट करने हेतु जोर-जोर से रोने लगी, फिर क्या था जिस मां के आंसू रो-रोकर सूख चुके थे और दिल ही दिल में अभी भी रो रही थी, उस परिचित महिला को रोता देख वो भी रोने लगी और ये दौर हर संवेदना प्रकट करने हेतु आने वाले के साथ चलता रहा। परिवर्तन तब आया, जब एक बहुत शांत स्वभाव की महिला संवेदना व्यक्त करने आर्इ। जिसका तरीका बहुत सुलझा हुआ था, हादसे से वह भी दु:खी थी। उसकी पलकें भीगी थी, पर उसने सबसे पहले बिना स्वयं रोए उस मां को समझाया और कहा, क्यो रोती हो भाभी, जो होना था वो तो हो चुका, अगर रोने से आपका बेटा वापस आ जाता है तो मैं भी आपके साथ खूब रोती। क्यों अपने आपको दु:खी करती हो। बहुत रो ली। अगर इसी तरह रोती रहीं तो बीमार हो जाओगी। फिर तुम्हारी ओर तुम्हारे परिवार की देखभाल कौन करेगा ? इतना कहकर वह परिचित महिला उस घर के छोटे-मोटे कार्यो मे हाथ बंटाने में लग गर्इ। अपील :- हर परिचित महिला-पुरूष को चाहिए कि, मृत आत्मा के प्रति ऐसी संवेदना व्यक्त करे, जिससे दुख कम करने की कोशिश हो, न कि जोर-जोर से रो-रोकर, उन्हे और दुखी करे।