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समाज के संगठन - कानाराम परिहार ( कालापीपल ) के विचार
Posted By : Posted By Mangal Senacha on 22 Sep 2012, 12:42:01
मनुष्य सामाजिक प्राणी है समाज के संगठन से ही मनुष्य का विकास होता है । समाज मे कहीं प्रकार की संस्थाएं बनाई जाती है समाज के कुछ बुद्धिजीवी विवेकशील समाज सेवी लोग मिलकर भी संस्थाओं का गठन करते है अपने समाज मे भी कही प्रकार की संस्थाएं कार्यरत है कुछ कागजी कार्यवाही वाली ओर कुछ वास्तविक भी कुछ संस्थाओं का गठन लोकतांत्रिक पद्धति व कुछ का स्वयंभू पद्धति से होता है। संस्थाओं की सफलता व असफलता में उनके कार्यकर्ताओं व उनके गठन की प्रक्रिया का भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है किसी भी संस्था का संचालन उनके पदाधिकारियों द्वारा किया जाता है उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य ही संस्था की सफलता व असफलता को तय करते है ओर संस्थाओ की सफलता उसके पदाधिकारियों द्वारा अपने कर्तव्यों का ईमानदारी के साथ निर्वाह करने पर भी निर्भर करती है। ऐसी स्थति मे संस्था की कार्यप्रणाली क्या हो तथा उसके पदाधिकरियों की नियुक्तियां उनके अधिकार दायित्व का विभाजन कैसे किया जाये एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। अपने समाज की कुछ कागजी संस्थाओं के कार्य पर ध्यान दे तो पता चलता है कि इनके पदाधिकारी काम तो कम करते है लेकिन दिखावा ज्यादा करते है हमे स्पष्ट नजर आता है कि ज्यादातर पदाधिकारी पदों की लोलुपता के कारण पदों को मजबुती से पकड़ कर बैठे है और इन्हे पद का इतना लोभ है कि इन्हे अपनी कोई कमी नजर नही आती है तथा ये पदों के लोभ मे अन्धे हो गए है और अपने पद को बचाने के चक्कर मे उन्होने संगठन व समाज का नुकसान भी किया है। इसी को बरकरार रखने के लिए इन्होने ऐसे लोगो को बढावा देना शुरु कर दिया है जो समाज के विकास की मजाक उड़ाते हो और चाटूकार चापलूस तथा श्री दीवान साहब, श्री आईजी साहब व अन्य बड़े पदाधिकरियों के इर्द गिर्द दिखावा करते जैसे मंक्खियां मिठाई पर भिन्न भिन्नाती है इसका प्रतिफल उन्हे सामाजिक संस्थाओं के पदों पर मनोनित करके दिया जा रहा है जबकि इनका जनाधार देखा जाय तो कहीं नजर नहीं आता है ऐसे सीधे मनोनित पदाधिकारी जब अपने समाज की संस्थाओ मे आ जाते है तो विकास की क्या उम्मीद की जा सकती है वे वास्तव मे तो सच्चे व मूल प्रतिनिधि नही हो सकते क्योकि उनका चुनाव आम लोगो की राय से नही हुआ ऐसे मे चापलूस व चाटूकार लोगो को बढावा मिलता है और सच्चै समाज सेवको को ठेस लगती है ऐसे मनोनित पदाधिकारी रोड़ा अटकाने वाले हो जाते है और समाज सच्चै प्रतिनिधित्व से वंचित हो जाता है समाज में ट्रस्ट के नाम से भी इसी प्रकार की संस्थाओं का गठन कर लिया जाता है जबकि सबसे पहले उन लोगो से पूछना या राय लेना अति आवश्यक है जिनके ऊपर उन्हे स्थापित किया जा रहा है आम आदमी की राय को ही आगे बढाएं। संस्था का गठन करने पर एक लोकप्रिय व विश्वसनीय संस्था का गठन किया जा सकता है। व्यक्ति सफल नहीं होता लोग उसे सफल बनाते है राष्ट्रीय स्तर का ट्रस्ट या संस्था बनाते है तो प्रदेशाध्यक्षों परगना अध्यक्षों या इनके स्तर के पदाधिकारियों की राय लेकर लोकतांत्रिक तरिके से ही गठन किया जाना चाहिए जिससे एक सर्वमान्य स्वीकृत नेतृत्व समज को मिलेगा और समाज में राजनैतिक चेतना भी जागृत होगी। लोगो को अपने मत की किमत का पता चलेगा जिसका परिणाम राजनीति मे भी मिलेगा और ऐसा नेतृत्व ही सफल होगा। समाज मे चाटुकार पद लोलुप लोगो को एक साइड में रखा जाना चाहिए सभी संस्थाओं के चुनाव लोकतांत्रिक तरिके से होना चाहिए राष्ट्रपति चुनाव की तरह राष्ट्रीय संस्थाओं के गठन मे चुने हुए प्रतिनिधि चुनाव कर सकते है। मनोनयन प्रणाली का उपयोग केवल उप समितियों के गठन में किया जा सकता है ताकि वे लोग भी रोड़ा नहीं अटकावें क्योकि मनोनयन प्रणाली गैर लोकतांत्रिक समाज विरोधी समाज को तोड़ने वाली चाटूकार, चापलूस, पदलोलुप लोगो की प्रणाली है जिसमें ईमानदार सच्चे समाजसेवक लोगों का स्थान नहीं है इससे समाज का विकास संभव नहीं है समाज के विकास के लिए जनाधार वाले व्यक्तियों को बढावा देना होगा तभी हम समाज की आदर्श संस्थाओं व ट्रस्ट का गठन कर सकेंगे । प्रेषक : कानाराम परिहार 09829358181