सीरवी समाज - ब्लॉग

बिन पुरुषार्थ सफलता कहाँ? - प्रस्तुति - हीराराम गहलोत, अध्यापक
Posted By : Posted By seervi on 24 Aug 2019, 03:48:35

शीर्षक:-बिन पुरुषार्थ सफलता कहाँ?

किसी कवि ने क्या खूब लिखा है कि
"बिना काम के मुकाम कैसा?
बिना मेहनत के,दाम कैसा?
जब तक ना हासिल हो मंजिल,
तो राह में,राही आराम कैसा?
यह हर उस व्यक्ति के लिए सफलता का बड़ा मूलमंत्र है जो पुरुषार्थ को साथ लेकर ढृढ इरादों से मंजिल की धुन में आगे बढ़ते रहते है।ऐसे व्यक्ति ही जीवन मे सफलता को अर्जित करते है औऱ वे अपने सपने को साकार कर जाते है।
विश्व के महान दार्शनिक औऱ विचारक सुकरात ने कहा था कि,"सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति वह है,जो प्रगति के लिए सर्वश्रेष्ठ परिश्रम करता है।" जो व्यक्ति सफलता पाने का इच्छुक होते है और हर हाल में सफलता पाने के लिए कठोर परिश्रम करता है।वे अपने निहित लक्ष्य को पाने के लिए तनिक भी विश्राम नही करते है और न ही अपने लक्ष्य को निगाहों से ओझल होने देते है।ऐसे व्यक्ति सफलता के शिखर पर पहुंचते है। पुरुषार्थी व्यक्ति दृढ़ इरादों के धनी होते है,वे समय को नियोजित कर पुरुषार्थ करते है।ऐसे व्यक्ति सकारात्मक विचारधारा के साथ आगे बढ़ते है।वे अपने जीवन मे असफल हो भी जाते है तो निराश नही होते है।वे सतत अपने को इस बात के लिए तैयार करते है कि यह जीवन का अंतिम पड़ाव नही है औऱ भी कई रास्ते है।
ऐसे व्यक्तियों के लिए सफलता प्राप्त करना कठिन नही बल्कि सरल हो जाता है।पुरुषार्थी व्यक्ति सच्चे कर्मयोगी होते है,वे कर्म को अपना हथियार बनाकर जीवन की राह में आगे बढ़ते रहते है।वे यह मानते है कि बिन पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नही होते है।पुरुषार्थ ही वह चाबी है जो भाग्य के ताले को खोलती है।वे हर कार्य में अपना सर्वोत्तम अर्पण करते है। इसके विपरीत आलसी व्यक्ति अपने जीवन का अमूल्य समय नींद औऱ आलस में ही गुजार देते है। ऐसे व्यक्ति जीवन मे कष्टों औऱ गरीबी को निमंत्रित करते है।उनका जीवन नरकमय हो जाता है। यह सच है कि जो व्यक्ति पुरुषार्थ से मुँह मोड़ते है ,उनको जीवन मे सफलता कदापि नही मिल सकती है।वे जीवनभर अपने दुःखों का रोना रोते है। वे मनुष्य रूप में जन्म लेकर भी धरती पर भार स्वरूप ही है।जीवन में सुखी और दुःखी होने का कारण व्यक्ति स्वयं ही है।जो जीवन मे पुरुषार्थ से जीता है,वह सदा सुखी रहता है।जीवन को परमानंद से जीता है।
जीवन मे सदा एक बात याद रखे कि "जैसे बीज खेत मे बोए बिना निष्फल रहता है,उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना भाग्य सिद्ध नही होता।"
विद्यार्थी मानव जीवन काल की आधारशिला है।यह समय भावी जीवन को स्वर्णिम बनाने का महत्वपूर्ण काल है।इस काल मे जो विद्यार्थी अनुशासन ,समय का नियोजन औऱ कठोर परिश्रम को अपने जीवन का अभिन्न अंग मान लेता है,उसका जीवन निखर जाता है। ऐसे विद्यार्थी जीवन की किसी भी परीक्षा में असफल नहीं होते है।हर विद्यार्थी को चाहिए कि वह अपने भावी जीवन को संवारने के लिए बड़ी लगन,उत्साह औऱ उमंग से पुरजोर पुरुषार्थ करे औऱ निरंतर सफलता की सीढ़ियों पर आगे बढ़े।वह जीवन के इस सुनहरे अवसर को यू ही व्यर्थं में खोए।इस जीवन के अवसर को खोने का मतलब है कि आप अपने हाथों भावी जीवन को कष्टपूर्ण बना रहे हो।आप स्वयं ही दुःखों को निमंत्रित कर रहे हो।आप स्वयं अपने भावी जीवन को नरक बना रहे है।यह काल सुख और आरामतलबी का नही है।
भारत के महान विचारक चाणक्य ने कहा था कि,
"विद्यार्थी कुतो सुखम,सुखार्थी कुतो विद्या।
विद्यार्थी वां त्यजेत सुखम, सुखार्थी वां त्यजेत विद्या।"
जो विद्यार्थी अपने जीवन के निहित लक्ष्य को पाने के लिए उत्साह से पुरुषार्थ करते है,वे निश्चित रूप से सफल होते है और उनका भावी जीवन बहुत ही स्वप्निल औऱ स्वर्णिम होता है। अतः प्रत्येक विद्यार्थी को चाहिए कि वह अपने भावी जीवन को आनंदमय बनाने के लिए आलस्य, आरामतलबी,निराशा और उत्साहहीनता से अपने आपको दूर रखें,वह अपने आपको एक दिव्य दीपक की तरह समझे और पूर्ण उत्साह औऱ साहस के बल पुरुषार्थ द्वारा जीवन के अंधकार को हरने का कार्य करे।जब अपने आपको पहचान लोगे तो जीवन मे निराशा और हताशा के बादल अपने आप ही छट जायेंगे।जीवन मे तम का कोई नाम नही होगा।अपने चहुँ ओर उजियारा ही उजियारा होगा। अंतर्मन के विश्वास से किए गए कर्मो से ही सफलता प्राप्त होती है। सदा अपने मन मे यह भाव रखे कि,
"है मुझे विश्वास अपने कर्म पर ही,
लक्ष्य पर निश्चित मुझे तो पहुंचना है।
पार करना है समुंदर तैरकर ही
डूबने की बात करना ही मना है।।"
आपका अपना आत्मविश्वास ही जीवन के हर संकटों से पार कराएगा।जीवन की हर परीक्षा में विजयी दिलाने में आत्मविश्वास और पुरुषार्थ का ही अहम योगदान होता है।स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को अपने संदेश में कहा था कि,"सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न औऱ जबरदस्त इच्छा रखो,प्रयत्नशील व्यक्ति कहता है,'मैं समुन्द्र पी जाऊंगा,मेरी इच्छा से पर्वत के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।' इस प्रकार की शक्ति औऱ इच्छा रखो।कड़ा परिश्रम करो,तुम अपने उद्देश्य को निश्चित पा जाओगे।यह बड़ी सच्चाई है,शक्ति ही जीवन औऱ कमजोरी ही मृत्यु है।शक्ति परम सुख है,अजर-अमर जीवन है,कमजोरी कभी न हटने वाला बोझा औऱ यंत्रणा है,कमजोरी ही मृत्यु है। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है।"
विद्यार्थी को जीवन में हर साल औऱ हर कदम पर परीक्षा से गुजरना होता है।परीक्षा में वही उत्तीर्ण होता है ,जिसे स्वयं पर पूर्ण विश्वास हो। आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है।इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में वही व्यक्ति सफल होता है जो अपने समय का नियोजन कर पूर्ण आत्मविश्वास से कठोर पुरुषार्थ करता है। इसलिए हर विद्यार्थी को चाहिए कि वह अपने समय का अच्छे ढंग से नियोजन का उपयोग करे। हर परीक्षा को सहजता से न लेकर उसे एक चुनौती के रूप में ले औऱ अपने कठोर पुरुषार्थ से श्रेष्ठ अंकों से उत्तीर्ण कर एक अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत करें। जो विद्यार्थी पूर्ण लगन,निष्ठा,समर्पण,आत्मविश्वास से कठोर पुरुषार्थ करते है,उनको जरूर सफलता मिलती है।उनके सपने साकार औऱ फलीभूत होते है।
यह संदेश हर उस व्यक्ति के लिए है जो मेहनत से जीना चाहता है और अपने कर्मो से प्यार करता है।
"सोच मत,साकार कर,
अपने कर्मो से प्यार कर।
मिलेगा,तेरी मेहनत का फल,
किसी औऱ का इंतजार मत कर।।"
सारांश यही है कि पुरुषार्थ ही जीवन का सच्चा भावार्थ है।बिन पुरुषार्थ जीवन का कोई अर्थ नही है औऱ बिन पुरुषार्थ सफलता नहीं।जीवन मे सफलता अर्जित करनी है तो पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कठोर परिश्रम करे।
आपका अपना
हीराराम चौधरी
अध्यापक(एम ए बीएड)
राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय,सोडावास(पाली)