सीरवी समाज - ब्लॉग

निबंध:-शिक्षा हमें अपनी मुश्किलों से आगे देखना सिखाती है।- प्रस्तुति - हीराराम गहलोत, अध्यापक
Posted By : Posted By seervi on 24 Aug 2019, 03:46:52

निबंध:-शिक्षा हमें अपनी मुश्किलों से आगे देखना सिखाती है।
शिक्षा एक प्रकाश का वह स्रोत है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा सच्चा पथ प्रदर्शक करती है।शिक्षा हमें अज्ञानता से बाहर निकालती है।शिक्षा अंधेरे से उजाले की ओर ले जाती है।हम सब शिक्षा की महत्ता जानते है।शिक्षा एक दिव्य प्रकाश पुंज है जिससे सर्वत्र उजियारा ही उजियारा होता है।
शिक्षा शब्द संस्कृत के 'शिक्ष' धातु से बना है जिसका अर्थ है -सीखना औऱ सिखाना। अर्थात सीखना औऱ सिखाने को प्रक्रिया ही शिक्षा है।सीखने औऱ सिखाने की प्रक्रिया में बहुत कुछ गहराई है।इस प्रक्रिया में दो केंद्र शिक्षार्थी औऱ शिक्षक न होकर तीन केंद्र हो जाते है,एक पाठ्यक्रम भी जुड़ जाता है।शिक्षा एक त्रिआयामी प्रक्रिया बन जाती है।यह त्रि-आयाम शिक्षा को पूर्णता प्रदान करता है।
भारतीय पवित्र ग्रन्थ "गीता" में शिक्षा के लिए लिखा है कि "सा विद्या विमुक्ते।"यानि विद्या(शिक्षा) वही जो बंधनो से मुक्त करे। शिक्षा जीवन की खुशहाली के मार्ग में आने वाली हर विपत्ति या मुश्किलों से मुकाबला करना सिखाती है।
भारतीय महान विचारक स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा के संदर्भ में कहा था कि,"शिक्षा व्यक्ति में अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।"
शिक्षा मनुष्य की आंतरिक शक्तियों को बाहर की तरफ आने के लिए प्रेरित करती है।हर व्यक्ति के भीतर बहुत सा गूढ़ ज्ञान होता है जो शिक्षा के द्वारा प्रकट होता है। शिक्षा हम सबको एक आदर्श इंसान बनाती है।शिक्षा हमें कर्तव्यकर्म का बोध कराती है।शिक्षा में ज्ञान,उचित आचरण औऱ तकनीकी दक्षता,शिक्षण औऱ विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट है।इस प्रकार शिक्षा कौशल,व्यापारों या व्यवसाय,मानसिक ,नैतिक औऱ सौंदर्य विषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है।
सर्वागीण विकास करना ही शिक्षा का सबसे बड़ा लक्ष्य है।
शिक्षा के अर्थ, अभिप्राय औऱ उद्देश्य के बाद हम शिक्षा के व्यापक स्वरूप पर दृष्टि डाले औऱ हम स्वयं गहन मंथन करे कि क्या शिक्षा पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित है?क्या शिक्षा शिक्षित लोगो के लिए ही है?जो शिक्षा दे वही शिक्षक है?ऐसे अनगिनत प्रश्न हमें गहन चिंतन में डाल जाते है।
सही अर्थ में शिक्षा पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नही है औऱ न ही इसका संबंध एक व्यक्ति या वर्ग विशेष(शिक्षक वर्ग) तक सीमित है। शिक्षा एक ऐसा सागर है जिसकी कोई उपमान नही है।एक ज्ञानी अपने ज्ञान को अपने तक सीमित रखे उसे ज्ञानी नही कहा जा सकता है,उसका ज्ञान व्यर्थ है।जिस व्यक्ति के पास ज्ञान या शिक्षा है औऱ वह दूसरों के लिए काम आ जाये तो वह सत्य शिक्षा है।
शिक्षा हमें जीवन में आने वाली मुश्किलों के निराकरण का उपाय सुझाती है। मुश्किलों या विकट हालातो से कैसे लड़ना है औऱ किस तरह से मुश्किलों को रौंद कर आगे बढ़ना है,यह उपाय मनुष्य को उसकी अंतर्निहित या अर्जित शिक्षा से प्राप्त होता है। शिक्षा मुश्किलों से परे जीवन के सुंदर स्वरूप का दर्शन कराती है।जब व्यक्ति अपने जीवन को खुशहाल या आनंददायी बनाने की चाहत रखता है या अपने जीवन के विराट लक्ष्य या सपने को साकार करने के लिए आगे बढ़ता है तो वह राह में आने वाली बड़ी से बड़ी मुश्किलों को अपने अर्जित शिक्षा से पार पा लेता है औऱ ढृढ इरादों व पुरुषार्थ से अपनी मंजिल को पा ही लेता है।
शिक्षा के द्वारा ही हमें जीवन में आने वाली बहुत-सी मुश्किलों से पार पाने के उपाय सूझते है।शिक्षा ही एक ऐसी श्रेष्ठ विधा है जिसके द्वारा जीवन की हर समस्या का समाधान खोज लेती है।शिक्षा हम सबको ढृढ इरादों का धनी बनाती है। जब हम जीवन की राह में आगे बढ़ते है तो राह की दुश्वारियों या कठिनाइयों से मुँह नही मोड़ते है,बल्कि दुगुने उत्साह-उमंग,जोश-उत्साह से मुकाबला कर सफलता अर्जित करने के लिए सतत आगे बढ़ते रहते है। आने वाली विपत्तियो का स्वागत करते है औऱ उससे लोहा लेने में आनंद प्राप्त करते है।
भारत के सबसे बड़े साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने विपत्ति के संदर्भ में लिखा था कि,"विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नही खुला।" ऐसी शिक्षा हम सबको विपत्तियों के लड़ने का साहस पैदा करती है।निराश व्यक्ति के मन में भी उत्साह का संचार हो जाता है औऱ वह भी मुश्किलों से मुकाबला करने के लिए उठ खड़ा हो जाता है।
विचार व्यक्ति को नव अभिप्रेरणा देता है।
भारत के राष्ट्र्वादी कवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपने काव्य में लिखा कि,
"मुश्किले दिल के इरादे आजमाती है।
स्वप्न के परदे निगाहों से हटाती है।।
हिम्मत मत हार, गिरकर ओ मुसाफिर,
ठोकरे इंसान को चलना सिखाती है।।"
यह प्रेरणादायी पंक्तियां हम सबके मन-मस्तिष्क में नव चेतना जागृत करती है।इसी नव चेतना से मुश्किलों से पार पा लेते है। जीवन में हर क्षेत्र ज्ञान,विज्ञान,व्यापार-वाणिज्य,आर्थिक,राजनैतिक,सांस्कृतिक,तकनीकी,
अंतरिक्ष,
संचार,भूगर्भिक इत्यादि में शिक्षा की सबसे बड़ी भूमिका होती है।शिक्षा के द्वारा ही हम मुश्किलों से पार पा जाते है। उदाहरण के लिए हम शैक्षिक क्षेत्र को ही ले तो हम पायेंगे कि प्राचीन काल में गुरूकुल शिक्षा व्यवस्था थी,बाद में इसका स्थान पाठशाला ने ले लिया औऱ इसके बाद विज्ञान-तकनीकी युग से आज स्मार्ट कक्षाए औऱ ऑन लाइन शिक्षा व्यवस्था में सुधार आया है।आज हम तकनीकी ज्ञान से बड़ी से बड़ी मुश्किल या समस्या का समाधान खोज लेते है।संचार व्यवस्था को ही ले तो कितना युगान्तकारी परिवर्तन हुआ है।प्राचीन काल में संदेशवाहक के द्वारा संदेश भेजे जाते थे,इस कारण समय औऱ धन दोनो खर्च होता था,इसका निराकरण करने के लिए तार, टेलीफोन की सुविधा का विकास हुआ।इससे भी मनुष्य को संतोष नही हुआ औऱ मनुष्य ने अपने तकनीकी ज्ञान से मोबाइल फोन का आविष्कार किया ,आज हम सब इस तकनीकी का अपने जीवन की बेहतरी के लिए उपयोग कर रहे है। बैंकिंग क्षेत्र में बहुत क्रांतिकारी परिवर्तन आया है।आज नेट बैंकिंग द्वारा व्यापार को नव गति मिली है।आज हम बैंक एटीएम सुविधा का उपयोग कर रहे है।एटीएम सुविधा में भी कई तकनीकी खामियां या मुश्किलें आ रही है,इनसे भी निजात पाने के लिए मनुष्य अपने दिमाग खपा रहा है।आज वैज्ञानिक चंद्रमा औऱ मंगल ग्रह पर मानव जीवन को बसाने की खोज कर रहा है।आज विश्व में युद्ध की विभीषका का खतरा मंडरा रहा है,ऐसे में मानव जीवन को कैसे बचाया जाय? इसके लिए वैज्ञानिक दिन-रात अन्वेषण कर रहे है। मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आने वाली मुश्किलों से मनुष्य अपने आपको तैयार कर रहा है औऱ सफलता के मार्ग पर तेज कदमो से आगे बढ़ रहा है।
सही शिक्षा हमें सही दिशा के साथ कामयाब बनाती है,वही गलत शिक्षा से जीवन नरकमय बन जाता है।यह शिक्षा का दोष नही है बल्कि मनुष्य के खुरापाती दिमाग की उपज है। यदि व्यक्ति यह चिंतन करे कि मुझे जो मानव जीवन मिला है उसे मैं अपनी सही शिक्षा से अपना भी भला करूँ औऱ दुसरो को भी सही राह दिखाऊँ। एक सच्चा इंसान अपने निहित ज्ञान का मानव कल्याण के लिए उपयोग करता है न कि मानव जाति के विनाश के लिए। आज जिस तरह से विश्व को आतंकवाद का दंश झेलना पड़ रहा है औऱ आतंकवादी मानवता के समूल नाश के लिए अपने राह में आने वाली मुश्किलों से पार पा कर आतंकवादी घटनाएं कर जाते है,उनकी यह शिक्षा शिक्षा नही है,वह उन्मादी अधूरा ज्ञान ही है।ऐसे ज्ञान को शिक्षा नही कहा जा सकता है।शिक्षा का विराट उद्देश्य है मानव का सर्वागीण विकास करना।
शिक्षा मानव कल्याण के विराट उद्देश्य पर केंद्रित हो।मानव कल्याण के रास्ते में आने वाली हर मुश्किलों का सामूहिक सामना कर सभी को ईमानदारी से कर्तव्यकर्म करना चाहिए। शिक्षित वह नही है जो बहुत सी डिग्रियां प्राप्त करके भी विध्वंसात्मक गतीतिविधियो को करता है या अपनी शिक्षा का दुरुपयोग करता है। यदि व्यक्ति अनपढ़ है लेकिन वह बड़ी ईमानदारी से मानव कल्याण के लिए कर्तव्यकर्म करता है या अपने पास अर्जित ज्ञान को लोगो मे बांटता हो।वह लोगों को जीवन मे आने वाली मुश्किलों के समाधान के उपाय सुझाता हो,तो वह अशिक्षित होकर भी शिक्षित है।
शिक्षा के द्वारा जिंदगी के कांटो भरे सफर को पार पाने की युक्ति मिल जाती है। शिक्षा के द्वारा बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी पराजित हो जाती है औऱ व्यक्ति के मनोबल को बढ़ाने में सहायक होती है। व्यक्ति का जब आत्मबल मजबूत होता है तो वह जिंदगी के सफर में निरंतर आगे बढ़ता जाता है।
यह सच्चाई है कि शिक्षा ही हमें मुश्किलों से आगे देखना सिखाती है। शिक्षा ही हमें नव हौसला प्रदान करती है। हर व्यक्ति के पास ऐसी शिक्षा हो कि वह जिंदगी के सफर में आबे वाली मुश्किलों से निराश न हो बल्कि सकारात्मक सोच रखे।यह मुश्किल मेरे जीवन के लिए एक अवसर है।इस अवसर का सदुपयोग मेरे जीवन को संवारने एवं परमार्थ कार्य के लिए करूँगा।
हम पवित्र आत्मा से यही प्रार्थना करते है कि,
" ऐ जिंदगी....!
मुश्किलों के सदा हल दे,
थक न सके हम..!
फुर्सत के कुछ पल दे..!
दुआ है दिल से,
सबको सुखद आज और
बेहतर कल दे...।"
द्वारा:-
हीराराम गेहलोत
अध्यापक
राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय,सोडावास(पाली)