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आप स्वयं अपने भाग्य की निर्माता हो - प्रस्तुति हीराराम गहलोत
Posted By : Posted By seervi on 01 Aug 2019, 04:22:33

आप स्वयं अपने भाग्य की निर्माता हो।
किसी ने कहा है कि ,
\"इरादा पक्का हो बंदे तो मंजिल तेरी दूर नही।
वह तुझसे दूर नही और तू उससे दूर नही।।\"
यह सच है कि हम जीवन में ठान ले तो असंभव को भी संभव कर जाते है।बस जरूरत इस बात की रहती है कि जीवन मे हम नेक इरादों से आगे बढ़े और अपनी कमियों के विश्लेषण कर उसमें सुधार करे।विद्यार्थी जीवन सम्पूर्ण जीवन काल का श्रेयष्कर समय होता है।यह जीवन निर्माण की आधारशिला भी होती है।यदि हर विद्यार्थी अपने इस समय का प्रयोग सही एवं सटीक तथा लयबद्ध कर ले तो सफलता मिलना आसान हो जाता है।
प्रत्येक विद्यार्थी चाहे वह बालक हो या बालिका अपने जीवन को संवारना चाहते है या सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अपने आपको देखना चाहते है।
अपने जीवन में कुछ आदर्श बनाये और उन आदर्शो को अपने जीवन का अहम हिस्सा मानते हुए जीवन जिये।
मैं इस आलेख में कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का जिक्र कर रहा हूँ जिन्हें आप आत्मचिंतन-मंथन करे और अपने जीवन मे बड़ी ईमानदारी से अपनाये तो सफलता निश्चित रूप से आपके साथ होगी।
1.विचारों में शुद्धता :-
विचार व्यक्ति के व्यक्तित्त्व का प्रकटीकरण होता है।विचार व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालते है।विचार व्यक्ति की सफलता और असफलता के निर्धारक होते है।सकारात्मक विचार व्यक्ति को नव ऊर्जा प्रदान करते है और नकारात्मक विचार व्यक्ति की शक्ति को क्षीण करते है एवं अनेक शारीरिक व मानसिक रोग उत्पन्न करते है।
कहते है कि,\"एक छोटा-सा नकारात्मक विचार हमें कई दिनों तक निराश कर सकता है और एक छोटा-सा सकारात्मक विचार हमारी निराशा को पल भर में दूर कर सकता है।\"
अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में सदा विचारों में शुद्धता रखनी चाहिए।
2.स्वविवेक का प्रयोग:-
व्यक्ति को अपने जीवन में अपने विवेक का सही प्रयोग करना चाहिए।स्वविवेक द्वारा ही जीवन को उचित मार्ग पर प्रशस्त कर सकता है।स्वविवेक के उचित प्रयोग से भाग्य का निर्धारण होता है।उधार ज्ञान से गाड़ी आरम्भ तो की जा सकती है लेकिन आगे नही बढ़ाई जा सकती है।
3.चारित्रिक दृढ़ता:-
जीवन मे सबसे बड़ी सम्पदा हमारा चरित्र होता है।जिस व्यक्ति का चरित्र उज्ज्वल है,वह व्यक्ति जीवन मे कभी भयाक्रांत नही होता है।जीवन मे सफल होने के लिए चारित्रिक ढृढ़ता का विकास अतिआवश्यक है,सद्चरित्र के द्वारा सफलता मिलने शुरू हो जाती है।
याद रखे कि,\"उज्ज्वल चरित्र और शुद्ध व्यवहारिक आचरण से बड़ी कोई वसियत नही और ईमानदारी से बड़ी कोई विरासत नही है।\"
अतः अपने आपको उच्च चरित्रवान बनाये।जीवन मे शिखर पर पहुंचने के लिए चरित्र की भूमिका सबसे अहम है।
4.आत्मविश्वास:-
आत्मविश्वास को मनुज जीवन में सफलता की कुंजी माना गया है।प्रत्येक मनुष्य को आत्मविश्वासी होना चाहिए।स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि,\"सबसे पहके अपने आप पर विश्वास करो,फिर भगवान पर विश्वास करो।\" आत्मविश्वास से लबरेज़ व्यक्ति सफलता को हर हाल में पा लेता है।
\"जिंदगी कांटो का सफर है,
हौसला इसकी पहचान है।।
रास्ते पर तो सभी चलते है,
जो रास्ता बनाये वही इंसान है।।\"
जीवन एक कांटो भरी डगर है,इस डगर में वही व्यक्ति मंजिल पा सकता है जिसमे आत्मविश्वास हो। विद्यार्थी को जीवन मे बहुत-सी परीक्षाओं से गुजरना होता है,अतः प्रत्येक परीक्षा को पूर्ण आत्मविश्वास से दे तो उसे जीवन मे सफलता मिल सकती है।
5.दृढ़ इच्छाशक्ति:-
दृढ़ इच्छा शक्ति हमारे संकल्पों को सार्थकता प्रदान करती है।मजबूत इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति असंभव कार्य को संभव कर जाता है।जिस व्यक्ति में जिद-जुनून और जज्बा हो वह व्यक्ति जीवन मे सफल इंसान बनता है।
अतः प्रत्येक विद्यार्थी को चाहिए कि वह अपने आपको दृढ़ इच्छाशक्ति वाला बनाया और अपने जीवन को सुखमय बनाये।
6.लक्ष्य का निर्धारण:-
व्यक्ति को अपने जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए।उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक क्षमता को लगा देना चाहिए।स्वामी विवेकानंद ने कहा,\"अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाइये,हर समय उसी का चिंतन करे,उसी का मनन करे और उसी के सहारे जीवित रहिये।\",
लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक निश्चित कार्ययोजना बनाइये और उस कार्ययोजना के आधार पर आगे बढिए। जीवन में सफलता जरूर अर्जित होगी।
7.कठोर परिश्रम:-
जीवन मे सफल वही व्यक्ति होता है जो कठोर परिश्रम करता है।जीवन मे कठिन परिश्रम से जी नही चुराए।श्रम का आदर करे व श्रम को अपना आराध्य समझे।
प्रत्येक कार्य की सफलता के लिए परिश्रम की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।बिना पुरुषार्थ के कोई भी कार्य सफल नही होता है।
जीवन में श्रम और आराम का संतुलन रखकर आगे बढ़े।सार्थक विश्राम से शारीरिक थकान मिटती है और विश्राम के समय व्यक्ति अपने कार्यो का आत्मचिंतन एवं आत्मविश्लेषण कर लेता है और उस कार्य के लिए अपनी नई योजना भी बना लेता है।अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि जीवन मे कठिन परिश्रम करे और जीवन मे सफलता प्राप्त करे।
जीवन मे उक्त बिंदुओं को अपनाकर हम अपने भाग्य का नव निर्माण कर सकते है।व्यक्ति स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माता है।जीवन का स्वयं ही कर्णधार है।
अंत मे सभी के लिए एक संदेश
\"चलते रहे कदम तो,
किनारा जरूर मिलेगा।

अंधकार से लड़ते रहे,
सवेरा जरूर खिलेगा।

जब ठान लिया मंजिल पर जाना,
रास्ता जरूर मिलेगा।।

ए राही न थक,चल
एक दिन समय जरूर फिरेगा।।

हीराराम गेहलोत
अध्यापक(M.A. B.Ed)
राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय,सोडावास(पाली)