हमें अपने समाज पर गर्व है
प्रिय बंधुओं
आप सभी का सादर अभिवादन है
आप सभी को मकर सक्रांति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनायें। हमारे वरिष्ठजनों ने अपनी मेहनत, लगन और सामाजिक सेवा से समाज को आज इस स्तिथि में ला दिया है कि हम आज अन्य समाजों में सर्वाधिक आदर की दृष्टि से देखे जाते हैं। यह हमारे प्रयासों का फल है।
हमारा मूल उद्देश्य ही जन सेवा है। सेवा भाव ही किसी समाज का प्राण तत्व होता है। ये समाज है, अगर आपने सच्चे मन से जन सेवा कि है तो निश्चत ही जन सामान्य उसे सराहेगा।
बंधुओं, समाजसेवा निश्चित ही एक कड़ी साधना है। यदि आप सच्चे समाजसेवी हैं तो बिना फल को सोचे, अपना कार्य निरन्तर करते हुए अपना अनुभव समाज सहयोग में करते जाएं। संत कबीरदास, रहीम, तुलसीदास आदि लोग कौन ज्यादा पढ़े-लिखे थे लेकिन इन लोगों ने समाज और देश को राह दिखाई, जनता की आँखे खोली, अपने समाज हित के कार्यों से ऊपरी चमक दमक कोई मायने नहीं रखता।
जो बोते हैं, उन्हीं को काटने का अवसर भी प्राप्त होता है। जो जैसा बोता है, उसी के अनुसार उसको वैसा ही चाकने को मिलता है। इसी तरह प्यार देने वाले प्यार पाते है और घृणा, द्वेष फैलाने वाले घृणा, द्वेष ही पाते हैं।
हमारा पूरा जीवन एक ऐसा पाठशाला है जहाँ हम हर पल कुछ न कुछ सीखते है बशर्ते हमारा नजरिया सकारात्मक हो। जीवन संग्राम में वे ही सफल होते हैं जो विषम परीस्थितियों में टूटते नहीं बल्कि अपने कर्तव्य पालन में जुटे रहते हैं।
जिस तरह सीरवी समाज के युवाओं ने कोरोना महामारी में सेवा कार्यों में अपना कर्तव्य निभाया वह काबिले तारीफ था। सीरवी समाज की विभिन्न संस्थाये, ट्रस्टों द्वारा भी संवेदना के साथ समाज के गरीबों, लाचारों, जरूरतमंदों, बीमारों एवं छात्रों को भी मदद करते हुए ट्रस्ट गठन के उद्देश्यों को सार्थक किया है। समाज में जागरूकता काफी बढ़ी है। आज सोशल मिडिया के द्वारा भी लोग एक-दूसरे जा दुःख बांटते हुए भी मदद कर रहें है यह देखकर ख़ुशी होती है। निश्चय ही हमें अपने सीरवी समाज पर गर्व है।
कोरोना महामारी ने अनेक लोगों को हमसे छीन लिया। हम ऐसे भाईयों/बहनों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दुःखी परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करते हैं।
आपका ही
मनोहर सीरवी सुपुत्र श्री रतन लाल जी राठौड़ जनासनी-साँगावास (मैसूरु)
सम्पादक, सीरवी समाज डॉट कॉम
सम्पादक, सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम
परमर्श मंडल सदस्य, श्री आई ज्योति त्रैमासिक पत्रिका, जवाली