| AMARARAM H CHOUDHARY - Septa |
[ Health Department ] |
BERA BADA KOTADA DADAI, PALI Rajasthan - 306115 |
Detail : MERA MEDICAL STORE HAI ME PUNE ME REHTA HU BAHUT SIMPLE HU | Message to AMARARAM H CHOUDHARY |
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| Mohanlal sirvi - Septa |
[ Health Department ] |
Dindoshi mumbai
Gaon dadai, Pali Rajasthan - |
Detail : Medical work | Message to Mohanlal sirvi |
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| Ramlal - Solanki |
[ Health Department ] |
Flat no-b-301, kamla park ,plot no-9/47/48, sector-10 New panvel taluka panvel raigarth pin cod no-410206, Raigarth Maharashtra - 410206 |
Detail : Medical | Message to Ramlal |
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| Kaliyan CHOUDHARY - Chouhan |
[ Health Department ] |
Jyot darshan build. Flat no. 403 kopra Navi Mumbai kharghar 410210, Raigad Maharashtra - 410210 |
Detail : Medical retail shop | Message to Kaliyan CHOUDHARY |
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| Mangilal parihar - Other |
[ Health Department ] |
Sarwano ka bass badher chowk bilara .town bilara, Jodhpur Rajasthan - 342602 |
Detail : मेल नर्स (कंपाउडर) | Message to Mangilal parihar |
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| Dinesh H Choudhary - Choyal |
[ Health Department ] |
#1610 B block 60feet road near Uco Bank Sahakar Nagar Bengaluru 560092, BENGALURU Karnataka - 560092 |
Detail : I am a Pharmacist and I am having a Pharmacy at Sahakar Nagar in Bengaluru Ganesh Medical Center Sahakar Nagar Bengaluru 560092 | Message to Dinesh H Choudhary |
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| Jeevan - Padiyaar |
[ Health Department ] |
25 near new post offices road sulibele hoskote taluk bangalore, Bangalore Karnataka - 562129 |
Detail : My self jeevan leave in sulibele banglore I\'m a pharmacist,,,. | Message to Jeevan |
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| K R SEERVI - Padiyaar |
[ Health Department ] |
ROOM NO.G1 , SHRI SHANTI APARTMENT, CENTRAL PARK, NALLASOPARA [EAST] 401209, PALGHAR Maharashtra - 401209 |
Message to K R SEERVI |
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| Subhash Parihar - Padiyaar |
[ Health Department ] |
Badlapur mumbai, Thane Maharashtra - |
Detail : Pharmacist | Message to Subhash Parihar |
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| Ramesh seervi - Solanki |
[ Health Department ] |
Maharashtra Hinjewadi pune, Mulshi Maharashtra - 411057 |
Detail : Medical self employed | Message to Ramesh seervi |
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| Someshver sirvi - Kaag |
[ Health Department ] |
421 , Bhawanipur colony, indore, Madhya Pradesh - |
Detail : Production Officer in Glenmark pharma | Message to Someshver sirvi |
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| jeetu sirvi - Hambad |
[ Health Department ] |
mallapur, R.R. Andhra Pradesh - 500076 |
Detail : B.PHARMA COMPLETED AND M.PHARMA GOING ON STUDY AT PCOP | Message to jeetu sirvi |
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| Surendra Rathore - Rathor |
[ Health Department ] |
Bera Narayan walo ka Badrwa bilara, Jodhpur Rajasthan - 342602 |
Detail : I m work in Alembic pharmaceutical. | Message to Surendra Rathore |
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| INDER SEERVI - Kaag |
[ Health Department ] |
Niramay height 301A wing katrap badlapur, Thane Maharashtra - 421503 |
Detail : Metro chemist d pharma | Message to INDER SEERVI |
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| Dinesh seervi - Barfa |
[ Health Department ] |
Charo gharo ka bass bhavi teh-bilara, Jodhpur Rajasthan - 342605 |
Detail : Ma jodhpur aiims hospital ma ldc post par hu | Message to Dinesh seervi |
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| Naren Solanki - Solanki |
[ Health Department ] |
11 LAXMI Nagar, Rajasthan - 306401 |
Login To View Mobile | Detail : सीरवी समाज-नाथा प्रथा का बढ़ता दुरूपयोग (लिव इन रिलेशनशिप की एक प्राचीन परंपरा) ( भाग 2)
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे है
पिछले लेख में मैंने लिखा था कि
लिव इन रिलेशनशिप सीरवी समाज में हमेशा चर्चा का विषय रहा है। सामाजिक रूप से इसे आज भी स्वीकार नहीं किया जाता है। स्त्री का शादी के बगैर पुरुष के साथ रहना सामाजिक दृष्टि से पाप समझा जाता है। घर-परिवार और समाज में लिव इन रिलेशनशिप की बात उठाते ही इसे पश्चिमी देशों की नकल कह कर दरकिनार कर दिया जाता है।
सीरवी समाज का समाजिक ढांचा आज भी यहीं मानता है कि जोड़ियां स्वर्ग से बनकर आती हैं। समाज में गहरी जड़ें जमा चुका यह बह्म सत्य शायद ही कभी टूट पाए! लेकिन, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सीरवी समाज में लिव इन रिलेशनशिप( सहजीवन) से मिलती-जुलती परंपरा काफी पुराने वक्त से चली आ रही है। यह आज भी उसी रूप में समाज में विद्यमान है।
लिव इन रिलेशनशिप से मिलने-जुलने वाली यह परंपरा सीरवी समाज में आज भी कायम है। इस प्रथा का नाम है ‘नाता प्रथा’। सीरवी समाज की इस इस प्रथा के मुताबिक, कोई शादीशुदा पुरुष या महिला अगर किसी दूसरे पुरुष और महिला के साथ अपनी इच्छा से रहना चाहती है तो वो अपने पति या पत्नी से तलाक लेकर रह सकती है। इसके लिए उन्हें एक निश्चित राशि चुकानी पड़ती है।
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए ।
जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा
बहुत से लोग वहीं छटपटा के बैठ गए
नाता प्रथा
साधारणतया पति की मृत्यु के पश्चात विधवा स्त्री का विवाह(नाता) के रूप में किसी नज़दीकी रिश्तेदार के साथ करवा दिया जाताहै । इस पुनर्विवाह को आम भाषा में पल्ले लगाना अथवा नाता करना कहा जाता है ।
यह विवाह समाज और पंच पटेलों की दृष्टि से मान्य है । इस प्रथा में मृत पति की पत्नी का, उसके ससुराल वालों के द्वारा परिवार के किसी अन्य सदस्य के साथ नाता (पल्ले बांधना) किया जाता है । इस प्रकार के विवाह में पंडित या पुरोहित आवश्यक नहीं होता है । भावी पति द्वारा स्त्री के हाथों में चूड़ी पहनाई जाती है और लड़की वाले पति के परिवार वालों से निश्चित रकम लेते हैं ।
कई बार तो पति के जीवित रहते हुए भी विवाहित लड़की किसी अन्य के नाते चली जाती है । नाते से उत्पन्न संतान वैध मानी जाती है । नाते से प्राप्त रकम का बँटबारा मृत पति के परिजनों व ससुराल वालों के बीच होता है । पंचों द्वारा इस तरह के नातों में एक कर के रूप में अलग-अलग निश्चित की गयी राशि ली जाती है ।
इतिहास में बीकानेर राज्य की राजकीय बहियों में प्राप्त 'रीढ़ का कर' इसी प्रकार का कर था ।
पुनर्विवाह के लिए निश्चित की गयी रकम ले लेने के पश्चात मृत पति के परिवार वालों द्वारा संबंध विच्छेद के प्रतीक के रूप में'बैर का कागद' दिया जाता है । इसके साथ ही विधवा स्त्री का दायित्व एक परिवार से हटकर दूसरे परिवार पर आ जाता है ।
गरिमा को ठेस पहुंचाती नाता प्रथा
राजस्थान के कई समाजों में नाता प्रथा के पीछे महिला के सामाजिक रूप से जीने के अधिकार को सुरक्षित करने का तर्क दिया जाता है। जबकि इसका दूसरा पक्ष ये है कि इस प्रथा के चलते कई बार महिला की गरिमा को भी ठेस पहुंचती है। विशेषकरं सीरवी समाज में नाता प्रथा का चलन जोर-शोर से होता है।
उनमें ये प्रथा महिला से जुड़े कई मुद्दों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। कई बार ये स्थिति होती है कि इस प्रथा में एक महिला का चार से पांच बार तक भी नाता विवाह हो जाता है। ऐसा भी होता है कि तीन-चार विवाह करने के बाद भी जीवनसाथी उपयुक्त नहीं मिलने पर महिलाओं को माता-पिता के पास या अकेले जीवन बिताना पड़ता है। ऐसे में इस तरह की महिलाओं को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है। इससे ये महिलाएं हीन भावना का शिकार भी हो जाती हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
नाता प्रथा के चलते कई पुरुषों से विवाह करने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है। अलग-अलग पुरुषों के संपर्क में आने से महिलाओं के लाइलाज बीमारियों का शिकार होने का खतरा भी बना रहता है। इसके अलावा जिन बालिकाओं का बाल विवाह हो जाता है, उन्हें भी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है।
बहुविवाह को बढ़ावा
नाता प्रथा के चलते सीरवी समाज में पुरुष पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी पत्नी ले आते हैं। इसके कई कारण होते हैं। कई बार संतान नहीं होने पर पति पहली पत्नी की सहमति से एक और पत्नी ले आता है। ऐसे मामलों में नाता विवाह को लेकर कोई विवाद नहीं होता। सीरवी समाज में ऐसे कई परिवार देखे जा सकते हैं, जहां एक व्यक्ति दो पत्नियों के साथ रहता है।
बाल विधवाओं के लिए नाता ही विकल्प
बाल विवाह के लिए बदनाम राजस्थान में बाल विधवाओं की समस्या भी कम नहीं हैं। जिस बच्ची में किसी तरह की समझ नहीं होती। उसे सिर्फ खेलना, हंसना, खिलखिलाना भाता हो। मां की गोद की वह आदी हो और पिता के दुलार को ही सब कुछ समझती हो। उस मासूम को यदि विधवा का चोला पहनना पड़े तो ये अन्याय की पराकाष्ठा होती है। इन बाल विधवाओं का पुनर्विवाह नहीं किया जाता। ऐसे में इनके पास नाता विवाह के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। इन्हें किसी भी उम्र के विधुर पुरुष या विवाहित एकल पुरुष के साथ नाता रख दिया जाता है। ऐसे में इनका जीवन और ज्यादा खराब स्थिति में आ जाता है। ये कहना मुश्किल होता है कि नाता रखने के बाद भी इनके जीवन में कोई सुधार आ जाएगा।
कर दी मासूम की शादी
नौ साल की एक मासूम की शादी इसलिए कर दी गई कि उसके चचेरे बड़े भाई-बहनों की शादी हो रही थी। माता-पिता ने खर्च से बचने के लिए एक ही मंडप में तीन शादियां कर दी। तीन-चार साल बाद मासूम बालिका के पति की असमय मौत हो गई। बालिग हुई तो उसे नाते रख दिया गया। इस लड़की व उसके पति के बीच झगड़े हुए तो वापस माता-पिता के पास आ गई। एकाध साल बाद फिर से दूसरे व्यक्ति से उसका नाता विवाह हो गया। कुछ महीनों में पता चला कि ये पति भी काम धंधा नहीं करता। मजबूरी में उसे फिर पति से अलग होना पड़ा। अब वह अकेले रहकर किसी तरह अपना पेट पालने को मजबूर है।
आत्मसम्मान को ठेस
सीरवी समाज में प्रचलित नाता प्रथा महिला के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है। इससे महिला को दोयम दर्जे की समझने की मानसिकता भी झलकती है। बार-बार नाता विवाह करने वाली महिला को हेय दृष्टि से देखा जाता है। सबसे बड़ी बात ये है कि समाज व अभिभावकों के दबाव में बचपन में हुई शादी के बाद बाल विधवा हो जाने वाली मासूम बालिकाओं का जीवन नरक सा हो जाता है।
अगर हम भारत की परंपराओं के इतिहास को देखें तो हमारे समाज में कुछ ऐसी पुरानी परम्पराऐं मिल जाएगी जो किन्ही विशेष परिस्थितियों के निराकरण के मकसद से बनाई गई थी। कहा जाता है, कि नाता प्रथा को विधवाओं एवं परित्यक्त स्त्रियों को सामाजिक जीवन से जोड़ने के लिए बनाया गया था। इस प्रथा के अन्तर्गत गांव के पंचों द्वारा पहली शादी के दौरान जन्में बच्चे या फिर अन्य मुद्दों पर चर्चा कर निपटारे के बाद उन्हे स्वतन्त्र जीवन की शरूआत करने की अनुमति दी जाती थी। समाज में किसी भी प्रथा का प्रारम्भ किसी विशेष उद्देश्य व सद्भावना से किया जाता है। धीरे -धीरे समय के साथ प्रथा या परम्परा को समाज अपनी आवश्यकता के अनुसार उपयोग में लेना प्रारम्भ कर देता है तो वही प्रथा , कुप्रथा में तब्दील हो जाती है। नाता प्रथा के विषय में चर्चा करते हुए यह गलत नहीं होगा कि आज पश्चिमी राजस्थान , मध्यप्रदेश तथा गुजरात में यह प्रथा, एक सामाजिक बुराई के रूप में उभर कर आई है।
प्रथा का दुरूपयोग आज के दौर में महिलाओं की तस्करी, दलाली अथवा महिलाओं की अदला-बदली में भी किया जा रहा है और इस कार्य में समुदाय स्तर के समाज के मुख्य प्रतिनिधियों द्वारा भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया जाता है, जिनमें जाति पंच, वृद्धजन एवं आस-पास के गांव के व्यक्ति भी इसमें सम्मिलित होते है। इस पूरी प्रक्रिया में महिला की सहमति को कोई महत्व नहीं दिया जाता है, और इसके परिणामस्वरूप वह महिला शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से चोटिल हो जाती है। प्रथा के दौरान इस प्रकार के मामलों में प्राप्त राशि को परिवार के सदस्यों यथा पिता/भाई/पति आदि में बांट दिया जाता है। प्रथा के कारण महिला की स्थिति वर्तमान में एक क्रय -विक्रय की जाने वाली वस्तु की तरह हो चुकी है। जिस प्रकार वस्तु का मुल्य वस्तु को न मिलकर उसके स्वामी को मिलता है उसी प्रकार नाता प्रथा के दौरान मिलने वाली राशि में से महिला को ना के बराबर मिलता है। वैधानिक पत्नी का दर्जा वह कभी प्राप्त नहीं कर पाती है तथा महिला की जिम्मेदारी उस नवीन परिवार को शारीरिक तथा आर्थिक सहायता करना है। वह अपना शेष जीवन उस नवीन परिवार की आर्थिक स्थिति व भावनात्मक सहायता करने में गुजर जाती है।
प्राचीनकाल से भारत की संस्कृति में नारी को पूजनीय एवं सम्मानीय माना जाता रहा है। वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण तथा परिवेश के कारण प्रथा का दुरूपयोग किया जा रहा है। आशा है कि आमजन में जागरूकता आयेगी तथा इस प्रथा का सही मायने में किसी महिला को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने व उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने में प्रयोग किया जायेगा।
नाता प्रथा: कानून को बनाते हैं हथियार
सीरवी समाज में परंपरा बन चुकी नाता प्रथा कई परिवारों के लिए सिरदर्द बन जाती है। महिला उत्पीडऩ कानून के लिए बनी धाराएं नाता प्रथा के कारण कई बार महिलाओं के लिए हथियार बन जाती हैं। नाता प्रथा को लेकर होने वाले विवाद की परिणीति कानूनी पचड़ों में पडऩे के रूप में होती है।
नाता प्रथा में कोई भी विवाहित पुरूष या महिला अगर किसी दूसरे पुरूष या महिला के साथ अपनी मर्जी से रहना चाहते हैं तो पुरुष को महिला के पूर्व पति या उसके परिवार को एक निश्चित राशि अदा करनी पड़ती है। इसके बाद दोनों के साथ रहने के दौरान महिला-पुरुष के बीच कोई विवाद हो जाता है तो अलग होने के लिए फिर से नाता राशि की वसूली की जाती है। इस विवाद को लेकर महिला की ओर से अपहरण, दुष्कर्म, यौन शोषण, दहेज प्रताडऩा की धाराओं में भी मामले दर्ज करवाए जाते हैं। महिला अत्याचारों को लेकर दर्ज होने अपराधों के आंकड़ों की बात करें तो 2013 में 1132, 2012 में 1016 व 970 प्रकरण दर्ज हुए।
चंदेरिया थाना क्षेत्र की एक महिला ने कुछ महीनों पहले रिपोर्ट दर्ज कराई कि वह अपनी मां के साथ रह रही थी। गांव के कुछ लोगों ने वहीं के एक व्यक्ति के साथ नाता विवाह के लिए उसे राजी किया। वह उस व्यक्ति के घर रहने चली गई, लेकिन वह अपने कथित पति के व्यवहार से तंग आ गई। इसका फायदा उठाते हुए जेठ ने सहानुभूति जताते हुए उसके साथ दुष्कर्म किया। कुछ दिन बाद वह वापस मां के पास आ गई। पीहर व नाते वाले पति का गांव एक ही होने से एक दिन कथित पति ने मौका देखकर खेत पर उसके साथ दुष्कर्म किया। इधर, इस उलझे मामले की जांच में पुलिस को भी मशक्कत करनी पड़ी।
दहेज प्रताडऩा में फंसा
जिले के एक थाना क्षेत्र में एक युवक की लाश कुएं में होने की सूचना ने पुलिस की चार दिन तक परेड करा दी। पांच-छह दिन बाद युवक जिंदा सामने आया तो पूरी कहानी सामने आई। वाकया ये था कि एक युवक पत्नी से परेशान होकर ससुराल से गायब हो गया। उसकी बाइक, मोबाइल व कपड़े कुएं के पास मिले। उसके परिजनों ने मौत की आशंका जताई तो पुलिस ने कुएं से पानी खंगाला। तीन दिन तक नहीं मिला तो प्रदर्शन भी हुआ। बाद में कहानी सामने आई तो युवक की पत्नी ने दहेज प्रताडऩा का प्रकरण दर्ज करवा दिया। इस प्रकरण के पीछे भी नाता प्रथा होने की आशंका सामने आई।
नाता प्रथा के कारण आते हैं कई मामले
अत्याचार के रूप में दहेज प्रताडऩा, दुष्कर्म, अपहरण आदि को लेकर कई प्रकरण दर्ज होते हैं। कई बार ऐसे प्रकरण नाता प्रथा के चलते होने वाले विवाद के कारण दर्ज करवाए जाते हैं। ऐसा भी होता है कि महिलाएं नाता प्रथा के दौरान दी गई राशि व गहनों की वसूली के लिए दहेज प्रताडऩा का मामला दर्ज करवा देती हैं।
प्रथा के शिकार मासूम बच्चों का रखवाला कौन?
उदाहरण है मां से परित्यक्त 5 साल की पिंकी। पिंकी अपनी 53 साल की दादी के साथ एक कच्चे घर में रहती है। मिल्कियत के नाम पर उनके पास दो बकरियां, एक गाय और एक बछड़ा है। पिंकी को याद भी नहीं कि उसकी मां कैसी थी। वजह ये है पिंकी के जन्म के कुछ वक्त बाद ही उसके पिता की मौत हो गई। फिर जब वो महज एक साल की थी, तो उसकी मां उसे छोड़कर नाता प्रथा के तहत किसी और के साथ रहने चली गई। न तो पिंकी को और न ही उसे पालने वाली उसकी दादी को पता है कि पिंकी की मां अभी कहां रहती है।
खास बात ये है कि आज के इस दौर में भी सीरवी समाज में इस प्रथा की बड़ी मान्यता है। कोई भी इसे गलत नहीं मानता। जबकि ये एक तरह से महिला को खरीदने की प्रथा है, जिसमें महिला के एवज में पुरुष को 2 से 5 lakh रुपये खर्च करने होते हैं। इसके बाद महिला को बिना शादी किए दूसरे पुरुष के साथ रहने की सामाजिक मंजूरी मिल जाती है। शर्त ये होती है कि महिला अपने साथ अपने बच्चे को नहीं ले जा सकती।
सेव द चिल्ड्रेन के राजस्थान विंग की नीमा पंत बताती हैं कि अधिकांश मामलों में महिला द्वारा पीछे छोड़े गए बच्चों का भविष्य चौपट ही हो जाता है। न तो उनके पोषण का ध्यान रखा जा पाता है और ना ही उनकी पढ़ाई लिखाई पर कोई ध्यान देता है। इन बच्चों को घरों और खेतों में काम भी करना पड़ता है।
हमारे में समाज में नाताप्रथा एक बड़ी समस्या है जिसके तहत घर की बहन-बेटी को छोटे विवादों को लेकर एक जगह से दूसरी और तीसरी जगह नाते भेज दिया जाता है जो बहुत गंभीर बात क्योंकि लडक़ी भी इंसान है लेकिन उसकी मर्जी को समाज के ठेकेदार अनदेखी कर अपनी मनमर्जी से इस घृणित कार्य को अंजाम दे रहे है। एक मवेशी की जिस तरह से खरीद फरोख्त होती है, उसे तरह से इंसान की खरीद फरोख्त की जा रही है यदि ऐसा ही चलता रहा तो समाज बहुत बडी बुराई का पात्र बन रहा है।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
सीरवी सन्देश पत्रिका में प्रकाशन हेतु
Written by
नरेंन सोलंकी (बोमदड़ा) s/o यशवंत राज चौधरी (टीचर)
11 लक्ष्मी नगर पाली
शिव शक्ति मेडिकल ब्यूटी प्रोडक्ट्स
आईटीआई रोड पाली
मोबाइल न
9057879876
9057880093 | Message to Naren Solanki |
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| SUJARAM CHOUDHARY - Kaag |
[ Health Department ] |
SHOP NO.7, SHUBH VIHAR, OPP.
ASHOK NAGAR, DADLANI ROAD,
BALKUM,, THANE Maharashtra - 400608 |
Detail : EMPLOYED AT MEDICAL SHOP | Message to SUJARAM CHOUDHARY |
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| Bhura Ram Sirvi - Gehlot |
[ Health Department ] |
Sesali road HP GAS godam bali, pali Rajasthan - 306701 |
Detail : I am pharmacist | Message to Bhura Ram Sirvi |
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| Bharat - Aaglecha |
[ Health Department ] |
Hanuman tekadi kajupada borivali east, MUMBAI Maharashtra - 400095 |
Message to Bharat |
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